किसकी गलियाँ ??

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दिल्ली एक ऐसा शहर है जहाँ लोग दूर दूर से आकर बस्ते हैं । यह कईं सालो पहले दिलवालो की दिल्ली कहलाती थी, पर अब ” रेप सिटी ” के नाम से जानी जाती है । इसी दिल्ली के दक्षिण की ओर बसें हैं  खिड़की  और हौज़ रानी। ये जगायें दिल्ली के प्रमुख़ मॉल “सेलेक्ट सिटी वाक” के पास पड़ते हैं ।

15 मई , 2016 के दिन खोज इंटरनेशनल आर्टिस्ट्स एसोसिएशन में एक राउंड टेबल डिस्कशन रखा गया। इस डिस्कशन का विषय था “नेटवर्क्स एंड नेबरहुड”। यह कार्यक्रम आयोजित किया था Sreejata Roy और Mrityunjay Chatterjee जी ने, जो कि पिछले एक साल से इस समुदायकलापरियोजना पर कम कर रहे हैं। पिछले एक साल से इन दोनों ने  खिड़की  और हौज़ रानी को समझ ने की कोशिश की है । वहां के लोगो को, तौर तरीकों को, हर एक गलियों व नक्शों को समझने की कोशिश की है … यह जो कार्यक्रम आयोजित किया गया था, वह Sreejata Roy और Mrityunjay Chatterjee जी के एक साल की यात्रा के अनुभव की चर्चा पर भी था ।

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इस डिस्कशन का प्रमुख विषय था..महिलाओं का अपने घर के बहार, आस पास की जगहों से सम्बन्ध; किस प्रकार एक महिला सार्वजानिक जगहों का इस्तेमाल करती है और करना चाहती है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय बनता जा रहा है. …क्योंकि …कही न कही महिलाओं के लिए बहार निकलना मुश्किल सा होता जा रहा है और उन्हें यह समझाया जा रहा है की यह उनकी भलाई के लिए है।

इस डिस्कशन में 6 पैनेलिस्ट को बुलाया गया …सभी पैनेलिस्ट ने अपने विचार विमर्श किये। कई सारी बातें बहार आयी … जैसे कि .. दिल्ली में जो जगह असुरक्षित मानी जाती है उन्हें सुरक्षित कैसे बनाए ???… क्या इन जगहों की निगरानी करना उनकी प्राइवेसी का उलंघन करना है ??? क्या दिल्ली हमेशा “रेप सिटी ” कहलाएगी  … या कुछ किया जा सकता है ??…जो कि  दिल्ली को उसका असली नाम वापस दिलवा सके ???

इस डिस्कशन ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि  क्या इस ज़माने में भी जहाँ हम कहते हैं की टेक्नोलॉजी  का जमाना है …दिल्ली जो कि एक मेट्रोपोलिटन सिटी है….. वहां अभी भी एक महिला का पब्लिक स्पेस का उपयोग करना एक बड़ा प्रशन है ?…..क्या सारी  जगाएं दिल्ली में एक सामान हैं?

एक तरफ सेलेक्ट सिटी वाक है जहां महिलायें और लड़कियां रात भर घूमतीं हैं और दूसरी तरफ खिरकी और हौज़ रानी, जो कि सड़क के बिलकुल दूसरी ओर है जहां महिलाओं की सुरक्षा, उनका समय के अनुसार पब्लिक स्पेस उपयोग करना,घर से बहार निकलना,सभी एक बहुत बड़ा प्रशन है… मेरा मानना है कि यह हालत केवल खिरकी और हॉउस रानी की ही नहीं बल्कि दिल्ली के अधिकांश जगाओ में की है.. जहां वे चाहें भी तो पब्लिक स्पेस का प्रयोग नहीं कर सकतीं । एक महिला का एक स्पेस से रिश्ता कही न कही समय पर भी निभर करता है। सुबह वो उस जगह को जिस प्रकार इस्तेमाल करेगी, वैसे ही रात  को नहीं करेगी। और रेप सिटी के धब्बे ने उसकी इस आज़ादी को भी बंद कर रखा है ।

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अब प्रशन आता है, क्या करें ??? क्योंकि….. ये सारी  बातें कईं सालों से चल रहीं हैं। अब अधिकांश महिलाओ को ऐसे बंद रहने की आदत हो गयी है। तो क्या किया जाये ??? हालात  को वैसे ही रहने दें ? कड़वे सच को, ” रेप सिटी ” को मान कर पब्लिक स्पेस छोड़ दें ? या कुछ किया जा सकता है ? Hidden – Pockets, Sreejata Roy और Mrityunjay Chatterjee, Safecity अथवा Safetipin, सभी इसका हल ढूंड रहें हैं।

Article by : Aisha Lovely George

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